Monday, September 3, 2012

हम भी काँटों से घिरे हुए हैं



गुलाब  की तरह
हम भी
काँटों से घिरे हुए हैं
ज़हन में
नफरत के कांटे बसाए लोग
सुकून की पंखुड़ियों को
बार बार  छेदने की
कोशिश में लगे रहते
 पर हम गुलाब जितने
किस्मत वाले नहीं
बार बार
हैरान तो होते हैं 
मगर  गुलाब से
मुस्काराना  सीखा
 वो हमें रोने नहीं देता
हम हालात को खुशी से
बर्दाश्त करते रहते
मुस्काराहट को चेहरे से
जाने ना  देते
03-09-2012
721-17-09-12


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