गुलाब की तरह
हम भी
काँटों से घिरे
हुए हैं
ज़हन में
नफरत के कांटे
बसाए लोग
सुकून की पंखुड़ियों
को
बार बार छेदने की
कोशिश में लगे
रहते
पर हम गुलाब जितने
किस्मत वाले
नहीं
बार बार
हैरान तो होते
हैं
मगर गुलाब से
मुस्काराना सीखा
वो हमें रोने नहीं देता
हम हालात को
खुशी से
बर्दाश्त करते
रहते
मुस्काराहट
को चेहरे से
जाने ना देते
03-09-2012
721-17-09-12
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