जो मिल गया
उसकी कद्र नहीं
जो नहीं मिला
निरंतर उसके सपने
देखता इंसान
देखे जो भी सपने पहले
पूरे हो जाते तो
भूल जाता इंसान
नयी इच्छाएं संजोने
लगता
नए सपने देखने लगता
भूल जाता
कभी रुकता नहीं
इच्छाओं का संसार
जो फंस गया
इच्छाओं के चक्रव्यूह में
फिर निकल नहीं पाता
कभी बाहर
जीना भूल जाता
बेचैनी मोल लेता
उलझ कर रह जाता
उसका संसार
जितनी
उसकी कद्र नहीं
जो नहीं मिला
निरंतर उसके सपने
देखता इंसान
देखे जो भी सपने पहले
पूरे हो जाते तो
भूल जाता इंसान
नयी इच्छाएं संजोने
लगता
नए सपने देखने लगता
भूल जाता
कभी रुकता नहीं
इच्छाओं का संसार
जो फंस गया
इच्छाओं के चक्रव्यूह में
फिर निकल नहीं पाता
कभी बाहर
जीना भूल जाता
बेचैनी मोल लेता
उलझ कर रह जाता
उसका संसार
जितनी
ज़ल्दी मुक्ती
पालो
इच्छाओं से
जीवन उतना ही
इच्छाओं से
जीवन उतना ही
साकार उसका
साकार
06-09-2012
723-19-09-12
3 comments:
http://vyakhyaa.blogspot.in/2012/10/blog-post_17.html
जो मिल गया
उसकी कद्र नहीं
जो नहीं मिला
निरंतर उसके सपने
देखता इंसान
बिल्कुल सच कहा आपने इन पंक्तियों में ...
सादर
्जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया
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