आज गुमनामी में
ज़िन्दगी गुजार रहा है
चमकता था आकाश में
सूरज की तरह
आज वक़्त के बादलों के
पीछे छुपा हुआ है
वक़्त इकसार नहीं रहता
अब जान गया है
अगर नहीं चढ़ता
गरूर दिमाग में
वक़्त की
चाल पहचान लेता
हर एक से हँस कर
मिलता रहता
आज अकेले बैठा
आसूं नहीं बहा रहा
होता
800-42-25-10-2012
गुमनामी,बुलंदी,वक़्त,समय,
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