नित्य की भाँति
कल रात भी चाँद
कल रात भी चाँद
मेरे कमरे की
खिड़की से झाँक रहा था
पूरे कमरे को चांदनी से
नहला रहा था
शीतल चांदनी और खिड़की से
झांकते चाँद को देख
मन मुझसे कहने लगा
चाँद से पूछों
क्यों केवल चांदनी को
भेज कर काम चलाता
ये कौन सा रिश्ता निभाता
मेरे पूछने से पहले ही
चाँद समझ गया मन
क्या चाहता है
चाँद बोला मैं मित्रता का
रिश्ता निभाता हूँ
निरंतर दूर रह कर भी
प्रेम दर्शाता हूँ
चांदनी को नित्य धरती पर
भेजता हूँ
रात के अँधेरे को दूर कर के
तुम्हारा जीना आसान
करता हूँ
रिश्तों को निभाने के लिए
नित्य मिलना ही
आवश्यक नहीं होता
दूर रहते हुए भी रिश्तों को
निभाया जा सकता
संवाद बनाया जा सकता
अनेकानेक तरीकों से मित्र
मित्र की मदद कर सकता
चांदनी की
सुन्दर भेंट के साथ
चाँद सुन्दर सीख भी
दे गया
मन को भाव विव्हल
कर गया
खिड़की से झाँक रहा था
पूरे कमरे को चांदनी से
नहला रहा था
शीतल चांदनी और खिड़की से
झांकते चाँद को देख
मन मुझसे कहने लगा
चाँद से पूछों
क्यों केवल चांदनी को
भेज कर काम चलाता
ये कौन सा रिश्ता निभाता
मेरे पूछने से पहले ही
चाँद समझ गया मन
क्या चाहता है
चाँद बोला मैं मित्रता का
रिश्ता निभाता हूँ
निरंतर दूर रह कर भी
प्रेम दर्शाता हूँ
चांदनी को नित्य धरती पर
भेजता हूँ
रात के अँधेरे को दूर कर के
तुम्हारा जीना आसान
करता हूँ
रिश्तों को निभाने के लिए
नित्य मिलना ही
आवश्यक नहीं होता
दूर रहते हुए भी रिश्तों को
निभाया जा सकता
संवाद बनाया जा सकता
अनेकानेक तरीकों से मित्र
मित्र की मदद कर सकता
चांदनी की
सुन्दर भेंट के साथ
चाँद सुन्दर सीख भी
दे गया
मन को भाव विव्हल
कर गया
810-52-28-10-2012
चाँद ,चांदनी,रिश्ते,मित्र,मित्रता
1 comment:
very nice thought!!!!!!
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