मंजिल करीब
थी
फिर भी बहुत
दूर थी
कदम थके नहीं
थे
ना हे हिम्मत
हारी थी
वो दिख क्या
गयी
कदम अड़ गए
नज़रें हटने
का नाम
नहीं ले रही
थी
खबर भी नहीं
हुयी
कब सुबह से
शाम
हो गयी
मंजिल करीब
थी
फिर भी बहुत
दूर थी
790-32-24-10-2012
मंजिल
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