Saturday, May 28, 2011

कभी फिर हरा होऊँगा

घने  जंगल में
हरे पेड़ों के बीच
किसी निर्जीव पेड़ के
ठूंठ सा खडा हूँ
पक्षियों की
चहचहाहट  सुनता हूँ
उन्हें उड़ते देखता हूँ
खुद चुपचाप रहता हूँ
निरंतर
भाग्य समझ
अकेलापन सहता हूँ
कभी फिर हरा
होऊँगा
उम्मीद में रहता हूँ
28-05-2011
947-154-05-11

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