Wednesday, May 18, 2011

हर रात उसे भी ऐसे ही जलाया जाता

सुबह का सूरज
निकला
किरणों ने धरती
को चूमा
उसका भी दिन
शुरू हुआ
उसकी नींद खुली
बदन दुःख रहा था
उसने
अस्तव्यस्त कपड़ों को
ठीक किया
बिखरे बालों को कंघी से
संवारा
लम्बी सी जम्हायी ली,
कुल्ला किया
रसोई में चूल्हे में
लकडियाँ डाली,तीली
लगायी
चाय बनाने के लिए
पतीली चढ़ायी
पानी गर्म होने का
इंतज़ार करते करते
रात का ध्यान आने लगा
मन घबराहट से
भर गया
उसका  दिन
ऐसे ही शुरू होता था
सुबह उठते ही,
रात की यादें पीछा नहीं
छोडती
रात में उसे भी निरंतर
चूल्हे की लकड़ी सा
जलना पड़ता था
राख जैसी निस्तेज
ना होती
तब तक उसके शरीर से
खेला जाता
कोई ना कोई ग्राहक
देर रात तक शराब के
नशे में चूर हो कर आता
शरीर की भूख मिटाता
थकता नहीं ,
तब तक शरीर को
झंझोड़त़ा रहता
हवस की तीली लगाता
रहता
हर रात उसे भी ऐसे ही
जलाया जाता
18-05-2011
883-90-05-11

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