Thursday, May 19, 2011

बस इतना सा याद है

बस इतना सा
याद है
जेठ की दोपहर में
बस के इंतज़ार में
 पेड़ के 
नीचे खडी थी
 माथे पर 
पसीने की बूँदें
मोती सी 
चमक रही थी
तपती दोपहरी में
उसकी ख़ूबसूरती 
आँखों को ठंडक दे
रही थी
निरंतर बरस रही
आग पर
पानी छिड़क 
रही थी
19-05-2011
890-97-05-11

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