Monday, May 23, 2011

कैसे हो ?

उनकी याद में कितनी
रातें स्याह हुयी
उम्मीदें दम तोडती रहीं
बारिश के इंतज़ार में
शज़र जैसे जल जाते
दिल भी उनके इंतज़ार में
निरंतर जल कर ख़ाक
होता रहा 
हम बर्बाद होते रहे
वो कहीं और मशगूल रहे
जब मिले भी तो
कैसे हो ?
कह कर निकल गए
हम
अफ़सोस मनाते रहे
(स्याह=काली शज़र=पेड़)
23-05-2011
915-222-05-11

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