Thursday, May 5, 2011

लेखक,कवी तारीफ़ की होड़ में फंसे

होड़ मची है
होड़ में जोड़ तोड़
मची है
कहीं अपने को बेहतर
बताने की
कहीं दूसरे को नीचा
दिखाने की
होड़ मची है
खिलाड़ी खेलते मैदान में
हिसाब किताब 
मैदान के
बाहर बराबर करते
कौन कितना
बेईमान हो सकता ?
नेता इस होड़ में जीते
कौन  ख़बरों को ज्यादा
सनसनीखेज बनाता ?
चैनल इस होड़ में रहते
लेखक,कवी 
तारीफ़ की होड़ में फंसे
खुद की कमीज़ साफ़
दूसरे की दागदार बताते
निरंतर धब्बे  ढूँढने में लगे हैं
मन व्यथित होता
जब होड़ का खेल देखता
खुद को
मैदान के बाहर पाता  
कहीं इस होड़ में ना
फँस जाऊं ?
इसलिए नादान खुद को
कहता
 05-05-2011
812-19-05-11

No comments: