Monday, May 16, 2011

सूरत का दीवाना था

सूरत का दीवाना था
सिर्फ हुस्न को मोहब्बत
समझता
हकीकत से दूर था
हुस्न के जाल में फंसा
खुश था तब तक पता
ना चला
वक़्त बदला
हादसे में चोटग्रस्त हुआ
नौकरी से हाथ  धोया
मोहब्बत ने किनारा किया
निरंतर अकेले जीने को
मजबूर हुआ
साधारण सी दिखने वाली
गरीब परित्यक्ता से
मिलना हुआ
मन मिला ,
दोनों का पुनर्विवाह
हुआ
जी जान से सेवा पत्नी
 ने करी
नौकरी कर इलाज
कराया
हिम्मत और धैर्य
सिखाया
हालात से लड़ कर
दिखाया

सूरत का जाला
दिमाग से हटाया
वक़्त बदला
पहले से बेहतर हुआ
जीवन प्यार से
कटने लगा
16-05-2011
867-74-05-11

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