Thursday, May 5, 2011

नयी सुबह की उम्मीद तो रहती

नयी सुबह की
उम्मीद तो रहती
उस से पहले की
काली रात डराती
खामोशी मन में
कई ख्याल लाती
ख़्वाबों में सिर्फ
मुश्किलें नज़र आती
किसी तरह रात
गुजर जाए
सिर्फ एक ही दुआ
खुदा से होती 
हर आवाज़ से
नींद उडती
निरंतर सोते जागते
रात किसी तरह 
गुजरती 
सुबह कैसी होगी ?
चिंता सताती
क्या रोशनी 
ज़िन्दगी में 
आयेगी ?
अपनी 
चमक से उसे
नहलायेगी ?
मन में सवाल 
पैदा करती
ज़िन्दगी यूँ ही
चलती रहती  
 05-05-2011
809-16-05-11

1 comment:

Unknown said...

निरंतर जी आपकी निरंतरता का जवाब नहीं. बहुत खूब.

दुनाली पर स्वागत है-
‌‌‌ना चाहकर भी