नयी सुबह की
उम्मीद तो रहती
उस से पहले की
काली रात डराती
खामोशी मन में
कई ख्याल लाती
ख़्वाबों में सिर्फ
मुश्किलें नज़र आती
किसी तरह रात
गुजर जाए
सिर्फ एक ही दुआ
खुदा से होती
हर आवाज़ से
नींद उडती
निरंतर सोते जागते
रात किसी तरह
गुजरती
गुजरती
सुबह कैसी होगी ?
चिंता सताती
क्या रोशनी
ज़िन्दगी में
आयेगी ?
आयेगी ?
अपनी
चमक से उसे
चमक से उसे
नहलायेगी ?
मन में सवाल
पैदा करती
ज़िन्दगी यूँ ही
चलती रहती
05-05-2011
809-16-05-11
1 comment:
निरंतर जी आपकी निरंतरता का जवाब नहीं. बहुत खूब.
दुनाली पर स्वागत है-
ना चाहकर भी
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