Friday, May 20, 2011

असंतुष्ट

बगीचे में
कई फूल खिले थे
खूबसूरत
रंग और महक से 
भरे थे
आँखों को निरंतर 
लुभाते
बगीचे में जब भी 
बैठता
सुकून नहीं मिलता
कुछ ना कुछ खालीपन
लगता
खूबसूरत माहौल में भी
मन असंतुष्ट रहता
विचारों का मंथन किया
कारण पता ना चला
तभी ख्याल आया
खुद से सवाल किया
कहीं गरूर तो बीच में
नहीं आता ?
संतुष्टी से दूर रखता
अपनों से दूर करता
आखिर प्रश्न का उत्तर
मिल गया
ज्यादा पाने की
इच्छा और गरूर ने
असंतुष्ट बना दिया
20-05-2011
894-101-05-11

No comments: