Sunday, May 29, 2011

अब रो रहा था

अब रो रहा था
शक्ल-ओ-सूरत के
जाल में उलझ गया था
मीठी बातों ,
लुभावनी मुस्कान में
फंस गया था
समझता था ,चेहरा
दिल की हकीकत बताता
पता ना था
लोगों के दिल में कुछ 
बाहर कुछ और भी होता
इंसान निरंतर धोखा
इस वज़ह से खाता
29-05-2011
955-162-05-11

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