Thursday, May 19, 2011

मुझे मेरी मंजिल का पता चल गया

पेड़ की छाव में
हरी घास में बैठा
ऊंगलियों में 
तिनकों से खेल रहा था
दरवाज़े की कुंडी बजी
नज़रें उठी 
वो दरवाज़े पर
खडी थी
माँ से किसी का
पता
पूछ रही थी
उसे मिला या नहीं
मुझे पता नहीं 
मुझे मेरी मंजिल का
पता चल गया
वहाँ तक पहुचना है
अब उसे पाना है
निरंतर उसके लिए
जीना है
19-05-2011
891-98-05-11

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