Sunday, May 8, 2011

कोई बावफा मिल जाए

कोई बावफा मिल जाए
अब यही तमन्ना बाकी है
मलहम
कोई ज़ख्मों पर लगाए
यादों पर
नया मुलम्मा चढ़ाए
आरज़ू सिर्फ यही बाकी है
निरंतर
ज़द्दोज़हद अपनों से होती रही
कोई पराया अपना बन जाए
हसरत यही बाकी है
चेहरे पर चेहरा ना चढ़ा हो
ऐसा कोई मिल जाए
उम्मीद अब भी बाकी है  
08-05-2011
820-27-05-11

1 comment:

Unknown said...

बहुत सुंदर. खूब.

मेरे ब्लॉग दुनाली पर देखें-
मैं तुझसे हूँ, माँ