कोई बावफा मिल जाए
अब यही तमन्ना बाकी है
मलहम
कोई ज़ख्मों पर लगाए
यादों पर
नया मुलम्मा चढ़ाए
आरज़ू सिर्फ यही बाकी है
निरंतर
ज़द्दोज़हद अपनों से होती रही
कोई पराया अपना बन जाए
हसरत यही बाकी है
चेहरे पर चेहरा ना चढ़ा हो
ऐसा कोई मिल जाए
उम्मीद अब भी बाकी है
08-05-2011
820-27-05-11
1 comment:
बहुत सुंदर. खूब.
मेरे ब्लॉग दुनाली पर देखें-
मैं तुझसे हूँ, माँ
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