सख्त नाराज़ था उनसे
लंबा अरसा बीत गया
ना ख़त भेजते
ना ख़त का जवाब देते
ना फ़ोन करते,ना फ़ोन उठाते
क्रोध में लिखना बंद किया
फ़ोन से नंबर हटा दिया
निरंतर उन्हें याद
फिर भी करता रहा
मन ही मन कोसत रहा
कभी खुदगर्ज़
कभी बेवफा कहता रहा
शर्म और ग्लानि से भर गया
जब अरसे बाद पता चला
दुर्घटना के शिकार हुए थे
अस्पताल में भरती थे
महीनों कोमा में थे
होश में आते ही नाम
मेरा लिया
मिलने की ख्वाइश का
इज़हार किया
किस मुंह से मिलू ?
सूरत कैसे दिखाऊँ उन्हें ?
इस सोच में डूबा हूँ
05-05-2011
813-20-05-11
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