Wednesday, May 4, 2011

पगडंडियाँ


कभी
ऊपर,कभी नीचे
कभी दायें कभी बायें
कटीली झाड़ियों और
पत्थरों के बीच
चलती हुयी पग डंडियाँ
जीवन यात्रा का अनुभव
कराती
कहीं गहरी खाई
मौत का डर बताती
हवा में झूमते
देवदार के लम्बे पेड़
चहचहाते पक्षी
निरंतर
खुशी से जीने का
सन्देश  देते
बिना थके चलने की
शक्ती देते
बादल पहाड़ों से
अठखेलियाँ करते
बिना हार माने
आगे बढ़ने की प्रेरणा
देते
मन करता
बिना हार माने
जीवन की पगडंडी पर
चलता रहूँ
हिम्मत से अपनी
मंजिल पर पहुँच
जाऊं 
04-05-2011
808-15-05-11

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