ख्याल उमड़ रहे मन में
उन्हें आने से क्यों रोकूँ
लफ्ज़ निकल रहे कलम से
उन्हें रोकूँ तो भी क्यों रोकूँ
हाल-ऐ-दिल सुनाने को बेताब हूँ
खुद को रोकूँ भी तो क्यों रोकूँ
बचे नहीं दुनिया में
दिल की सुननेवाले
सब लगे हैं अपनी सुनाने में
तो पढने वालों को क्यों रोकूँ
जानता हूँ ना देगा कोई सहारा
ना समझेगा बात मन की
भूले से भी गर दे दी
दुआएं किसी ने
उसे दुआ देने से क्यों रोकूँ
843-27-16-11-2012
ख्याल,विचार,हाल-ऐ-दिल ,शायरी
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