Tuesday, November 20, 2012

कू-ब-कू भटकता रहा



कू-ब-कू भटकता रहा
बिना दर्द के
कोई ना मिला
जिसने भी कहा
उसे दर्द नहीं
एक शख्श हँसता मिला
मैंने पूछा
क्या उसे कोई गम नहीं
नम आँखों से कहने लगा 
क्यूं मेरी बात पर
यकीं करते नहीं
कह तो रहा हूँ
मुझे कोई दर्द नहीं
कहते कहते
वो अश्क बहाने लगा
मैं भी जिद पर अड़ गया
उसके दर्द को बढ़ा दिया
फिर सवाल दाग दिया
इतना रो रहे हो
फिर भी क्यूं कहते हो
तुम्हें कोई दर्द नहीं
वो फूट फूट कर रोने लगा
सुबक सुबक कर
कहने लगा
कुछ लम्हे मन को
सुकून देने के लिए
कहता हूँ
मुझे कोई दर्द नहीं
तुमने वो भी नहीं
करने दिया    
कू-ब-कू =गली गली ,जगह जगह
852-36-20-11-2012
जीवन ,ज़िन्दगी ,दुःख,दर्द,सुकून

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