मैंने तो चाहा था
सवेरा बन कर ही जीऊँ
शाम कभी देखू ही नहीं
मेरा सपना तो पूरा
नहीं हुआ
पर इतना अवश्य
समझ गया
बिना शाम देखे
सवेरे का महत्व
नहीं समझ पाता
जीवन का हर पहलु
नहीं जान पाता
जीवन के हर रूप को
दिखाने के पीछे
इश्वर का मंतव्य
नहीं समझ पाता
862-46-23-11-2012
जीवन,ज़िन्दगी,सवेरा,शाम,इश्वर,मंतव्य
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