Friday, November 23, 2012

मैंने तो चाहा था सवेरा बन कर ही जीऊँ



मैंने तो चाहा था
सवेरा बन कर ही जीऊँ
शाम कभी देखू ही नहीं
मेरा सपना तो पूरा
नहीं हुआ
पर इतना अवश्य
समझ गया
बिना शाम देखे
सवेरे का महत्व
नहीं समझ पाता
जीवन का हर पहलु
नहीं जान पाता
जीवन के हर रूप को
दिखाने के पीछे
इश्वर का मंतव्य
नहीं समझ पाता
862-46-23-11-2012
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