शक
और नफरत को दिल और ज़हन से निकाल दे
दिल इस हद तक
शक और नफरत से
भर गया
आधी बात सुन कर ही
मतलब निकालने लगा
जिसका वजूद ही नहीं
उसकी मूरत बनाने लगा
तुम किसी से हंस कर
बात कर रहे थे
बार बार मेरी तरफ
शक और नफरत से
भर गया
आधी बात सुन कर ही
मतलब निकालने लगा
जिसका वजूद ही नहीं
उसकी मूरत बनाने लगा
तुम किसी से हंस कर
बात कर रहे थे
बार बार मेरी तरफ
देख रहे थे
मैंने समझा तुम मेरी ही
बात कर रहे हो
आग बबूला हो कर
गंदे लफ़्ज़ों से तुम्हारा
इस्तकबाल किया
बाद में पता चला
तुम किसी और बात पर
हंस रहे थे
अब सोचता हूँ खामखाँ
जुबां को गंदा किया
दिमागी दिवालियापन का
सबूत दिया
अब खुदा से दुआ करता हूँ
लाइलाज हो जाए उससे पहले
इस बीमारी का इलाज़ कर दे
गिरे हुए ख्यालों को
अब और ना गिरने दे
मुझे इंसानियत की राह से
मत भटकने दे
शक और नफरत को
दिल और ज़हन से निकाल दे
मैंने समझा तुम मेरी ही
बात कर रहे हो
आग बबूला हो कर
गंदे लफ़्ज़ों से तुम्हारा
इस्तकबाल किया
बाद में पता चला
तुम किसी और बात पर
हंस रहे थे
अब सोचता हूँ खामखाँ
जुबां को गंदा किया
दिमागी दिवालियापन का
सबूत दिया
अब खुदा से दुआ करता हूँ
लाइलाज हो जाए उससे पहले
इस बीमारी का इलाज़ कर दे
गिरे हुए ख्यालों को
अब और ना गिरने दे
मुझे इंसानियत की राह से
मत भटकने दे
शक और नफरत को
दिल और ज़हन से निकाल दे
824-08-06-11-2012
शक.नफरत,इंसानियत
No comments:
Post a Comment