स्वयं
को पढ़ा लिखा
विद्वान समझता हूँ
पर आज तक समझ
नहीं पाया
क्यों मूर्तियों की पूजा
करता हूँ
सब करते हैं इसलिए
मैं भी करता रहा हूँ
करता रहूँगा
उचित अनुचित का
प्रश्न नहीं उठाऊंगा
भीड़ के साथ चलता रहा हूँ
चलता रहूँगा
अलग चलने का प्रयत्न
करूंगा
तो पत्थर खाऊंगा
विद्वान समझता हूँ
पर आज तक समझ
नहीं पाया
क्यों मूर्तियों की पूजा
करता हूँ
सब करते हैं इसलिए
मैं भी करता रहा हूँ
करता रहूँगा
उचित अनुचित का
प्रश्न नहीं उठाऊंगा
भीड़ के साथ चलता रहा हूँ
चलता रहूँगा
अलग चलने का प्रयत्न
करूंगा
तो पत्थर खाऊंगा
848-32-20-11-2012
मूर्ती पूजा,धर्म,जीवन,भेड़
चाल,भीड़
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