Tuesday, November 6, 2012

थक गया हूँ तेरा मेरा सुनते सुनते


थक गया हूँ तेरा मेरा सुनते सुनते
थक गया हूँ
तेरा मेरा सुनते सुनते
थक गया हूँ
स्वार्थ का पेट भरते भरते
मन भर गया
रिश्तों को तोड़ते तोड़ते
उकता गया हूँ 
चेहरा बदलते बदलते
अब सोचता हूँ
क्या जैसा हूँ वैसा बन कर
नहीं रह सकता
झूठ का चोला उतार कर
नहीं फैंक सकता
टूटे रिश्तों को फिर से
जोड़ नहीं सकता
आत्म मंथन करता हूँ
खुद के प्रश्न का उत्तर
खुद ही देता हूँ
केवल इंसान बन कर जी लो
सारी कुंठाओं से मुक्त हो
जाओगे
खुशी से जियोगे
825-09-06-11-2012
सच,झूठ,स्वार्थ,आत्म मंथन,कुंठा,रिश्ते,

No comments: