माँ तुम महक
हो
उस फूल की
जिसे रिश्ता
कहते हैं
माँ तुम फूल
हो
उस पौधे की
जिसे परिवार
कहते हैं
तुम छाया हो
उस
वट वृक्ष की
जिसके नीचे
परिवार
पलता है
तुम डोर हो
त्याग की
जो परिवार को
बाँध कर रखती
है
माँ तुम प्रतीक
हो
कर्तव्य और
निष्ठा की
जो मुझे जीना
सिखाती है
माँ तुम
तुम रोशनी हो
उस
दीपक की
जिसकी रोशनी
मुझे
जीवन पथ से
भटकने नहीं
देती
माँ तुम प्रतिमूर्ती
हो
सहनशीलता की
जो खुद सहती
है पर
मुझे सहने नहीं
देती
माँ तुम
पराकाष्ठा हो
स्नेह की
तुम्हारे ध्यान
भर से ही
सुखद अनुभूती
होती है
माँ तुम माँ
हो
कोई बराबरी
नहीं
हो सकती तुम्हारी
881-65-29-11-2012
माँ
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