कहीं खो गया हूँ खुद को भूल गया हूँ सब की सोचते सोचते खुद भटक गया हूँ आत्मविश्वास से डिग गया हूँ निराशा के चक्रव्यूह में उलझ गया हूँ इतना अवश्य पता है बिना अभिमन्यु बने चक्रव्यूह नहीं टूटेगा मेरे अन्दर के अर्जुन को ढूंढना होगा निराशा के चक्रव्यूह को कैसे तोडूँ ? याद करना होगा अभिमन्यु सा चक्रव्यूह में नहीं उलझूं ये भी जानना होगा आत्मविश्वास पाना होगा पहले सा हँसते हुए जीना होगा
01-04-2012
421-01-04-12
2 comments:
Very profound thought, Dr. Tela , it made nice reading...
Pratima Mathur
http://pratimamathur.blogspot.in/
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Pratima Mathur
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