Monday, April 2, 2012

बिना अभिमन्यु बने चक्रव्यूह नहीं टूटेगा

कहीं खो गया हूँ 
खुद को भूल गया हूँ 
सब की सोचते सोचते 
खुद भटक गया हूँ 
आत्मविश्वास से डिग
गया हूँ 
निराशा के चक्रव्यूह में 
उलझ गया हूँ 
इतना अवश्य पता है 
बिना अभिमन्यु बने 
चक्रव्यूह नहीं टूटेगा
मेरे अन्दर के अर्जुन को 
ढूंढना होगा 
निराशा के चक्रव्यूह को 
कैसे तोडूँ ?
याद करना होगा 
अभिमन्यु सा 
चक्रव्यूह में नहीं उलझूं 
ये भी जानना होगा 
आत्मविश्वास पाना होगा 
पहले सा हँसते हुए
जीना होगा 
01-04-2012
421-01-04-12

2 comments:

Pratima Mathur said...

Very profound thought, Dr. Tela , it made nice reading...

Pratima Mathur
http://pratimamathur.blogspot.in/

Pratima Mathur said...

Very profound thought, Dr. Tela , it made nice reading...

Pratima Mathur
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