आज वो
नज़र आ गए
यादों के बाँध के
दरवाज़े खुल गए
कल कल करता
टूटे रिश्तों का पानी
धड धडा कर बहने लगा
कैसे रिश्तों की
ज़मीन में दरार पडी
अहम् ने खाई में बदल दी
किनारे इतने दूर हो गए
चाह कर भी फिर मिल
नहीं सके
साथ बिताए समय का
एक एक द्रश्य आँखों के
सामने से गुजरने लगा
ह्रदय पीड़ा से भरने लगा
आँखों से
अश्रु निकलने ही वाले थे
मैंने मन को कठोर किया
फिर ह्रदय से प्रश्न किया
क्यों फिर से
चक्रव्यूह में फसना
चाहती हो
पहले जो भुगता
क्या वो कम नहीं था
भूल जाओ
जो छूट गया उसे छूट
जाने दो
आगे बढ़ो
कुछ नया करो
कोई नया साथ ढूंढों
दिल से दिल
मन से मन मिलाओ
अहम् को ताक में रखो
जो पहले करा अब
ना करना
हँसते हुए सफ़र पर
चल पड़ो
30-04-2012
484-65-04-12
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