सदा अनकही रहती हैं
कभी मुस्काराहट
कभी क्रोध दिलाती हैं
किसी को बताऊँ
नहीं बताऊँ की दुविधा में
छाया बन कर साथ
चलती हैं
दिखती नहीं
पर मन को झंझोड़ती हैं
अन्दर ही अन्दर
छुप कर निरंतर घाव
हरे करती
जीवन पर्यंत साथ
निभाती हैं
11-04-2012
430-09-04-12
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