मैं खुद के बनाए
पिंजरे में बंद पंछी सा हूँ
जो पिंजरे की
जालियों के पार
देख तो सकता है
पिंजरे के
नियम कायदों से
मन में छटपटाहट
भी होती है
कई बार खुद को बेबस
महसूस करता हूँ
स्वछन्द उड़ना चाहता हूँ
पर पिंजरे से
इतना मोह हो गया
कोई दरवाज़ा खोल भी दे
तो चाह कर भी
उड़ नहीं पाऊंगा
30-04-2012
485-66-04-12
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