उसके रुसवा होना से
ज़िंदा रहना दुश्वार
हो गया
किस उम्मीद से
घर के दरवाज़े पर
खडा होऊँ ?
अब तो घर के सामने से भी
कोई गुज़रता नहीं
मेरे दिल के आँगन जैसे
मेरे घर की गली भी
सुनसान हो गयी
दिल टूट कर बिखर
ना जाए कहीं
वक़्त से पहले ही
तन्हायी जान ना ले ले
अब शहर से ही रुखसत
लेनी होगी
उम्मीदों की नगरी
कहीं और बसानी होगी
17-04-2012
447-27-04-12
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