ज़ख्मों को कुरेद कर
दर्द को बुलावा ना दो
मुस्काराते चेहरों को
दिल का चारागार ना
समझो
वो कातिल-ऐ-दिल होते हैं
पहले भी खाई है चोट तुमने
कई बार देखे हैं
उनकी बेवफायी के जलवे
अब छोड़ दो
मोहब्बत का इरादा
ज़ख्मों को फिर हरा
ना होने दो
इस बार जो फँस गए
उनके जाल में
वफ़ा की उम्मीद में
कहीं जाँ से हाथ ना
धो बैठो
17-04-2012
452-32-04-12
No comments:
Post a Comment