Thursday, April 12, 2012

अँधेरे में भी रोशनी निरंतर मेरे साथ रहती


आज भी दिन भर
दिमाग में
कोई ना कोई उधेड़बुन
चलती रही
खुद से सवाल किया
क्या ज़िन्दगी
ऐसे ही चलती रहेगी ?
मन की आस फिर भी
टूटी नहीं
बिस्तर पर लेटते ही
आँखें बंद हो गयी 
जिनकी हर इच्छा पूरी
हो जाती
नींद की तलाश में
ज़िन्दगी भर भटकते रहते
अधिक पाने की इच्छा में
सो ना पाते
यही क्या कम बात है ?
मुझे इतनी आसानी से
नींद आ जाती
अँधेरे में भी रोशनी 
निरंतर मेरे साथ रहती

11-04-2012
434-14-04-12

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