Friday, April 20, 2012

नींद मानो रूठ कर बैठ गयी


रात
नींद को बुलाता रहा
करवटें बदलता रहा
पर  नींद मानो 
रूठ कर बैठ गयी ,
बहुत
कशमकश और मिन्नतों के
बाद भी नहीं आयी
जब आयी तो
मुझे पता ही नहीं चला
कब आयी,
शायद थक हार कर
आँखें अपने आप
बंद हो गयी
नींद की गोद में जाते ही
मैंने उससे
नाराजगी का कारण पूछा
तो कहने लगी
तुम मुझे ढंग से बुलाते कहाँ हो
बिस्तर पर लेटते ही
कभी टीवी देखते हो
कभी विचारों में मग्न
हो जाते हो
दिन में क्या हुआ ?
किसने क्या करा,कहा ,
कल क्या करना है
पुरानी बातें याद कर के
व्यथित होते रहते हो
बेहद थके होते हो
जब अवश्य ऐसा नहीं होता
अब तुम्ही बताओ
मैं आ कर भी क्या करूँ
मन की उद्वेलित अवस्था में
आ भी जाऊं तो ,
तुम रात भर सपने में भी
वही सब करोगे
मुझे बुलाना हो तो
विचारों का मंथन त्याग कर
शांत मन और मष्तिष्क से
बुलाओ
परमात्मा का ध्यान करो
मैं तुरंत आकर तुम्हें
अपने गोद में ले लूंगी
हाँ ,अस्वस्थता में
अवश्य स्वयं पर वश
नहीं रहता
20-04-2012
469-50-04-12

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