Thursday, April 12, 2012

हास्य कविता-सर्द रात में उल्लू बोला


कविता पाठ करना
प्रारम्भ किया
सर्द रात में उल्लू बोला
एक मनचले श्रोता ने
आवाज़ लगाई
आज गर्मी की शाम को
मंच से बोल रहा है
हँसमुखजी ने क्रोध
काबू में किया
नहले पर दहला मारा
आवाज़ सुनते ही
उल्लू का भाई
श्रोताओं के बीच से बोला
श्रोता ने चिढ कर सवाल किया
तुमने मुझे उल्लू कैसे कहा
हँसमुखजी बोले
गलती से तुम्हें उल्लू
कह दिया
तुम तो काले कव्वे हो
खामखाँ
कांव कांव कर रहे हो
कांव कांव करना बंद करो
मुझे कविता पाठ करने दो
11-04-2012
432-11-04-12

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