Tuesday, April 17, 2012

माँ की चिंता


सर्दी की रात थी
घड़ी की सूइयां
बारह बजा रही थी
दोस्तों की महफ़िल सजी थी
घर जाने की ज़ल्दी ना थी
माँ बेसब्री से
इंतज़ार करती होगी
जानते हुयी भी
घर जाने की इच्छा ना हुयी
महफ़िल ख़त्म हुयी
घर पहुँच कर घंटी बजाई
माँ ने दरवाज़ा खोलने में
देर लगायी
दरवाज़ा खुलते ही
देरी के लिए खरी खोटी
सुनायी
माँ कुछ ना बोली
भोजन की थाली लगायी
गर्म रोटी बना कर खिलायी
चुपचाप खाट पर जाकर
लेट गयी
फिर आवाज़ लगायी
एक नींद की गोली दे दे
मुझको
मुझे बात समझ नहीं आयी
तुरंत जाकर
माँ के सर पर हाथ रखा
सर बुखार से तप रहा था
मन ग्लानी से भर गया
अपने व्यवहार पर
क्रोध आने लगा
एक मैं हूँ जिसे
माँ की चिंता ही नहीं
दूसरी तरफ माँ है
जिसे मेरे सिवाय
किसी की चिंता नहीं
बरस बीत गए इस बात को
पर भूला नहीं हूँ
खुद को माफ़ नहीं
कर सका
अब भी आँखें भीग जाती हैं
उस घटना को याद कर के
कितना भी प्रायश्चित
करलूं
माँ की बराबरी नहीं
कर सकता
माँ तो माँ होती
उसका सानी
ना कभी हुआ है कोई
ना कोई हो सकता
17-04-2012
446-26-04-12

1 comment:

Dr Neha Nyati said...

heart touching!!!!!!!