सर्दी की रात थी
घड़ी की सूइयां
बारह बजा रही थी
दोस्तों की महफ़िल सजी थी
घर जाने की ज़ल्दी ना थी
माँ बेसब्री से
इंतज़ार करती होगी
जानते हुयी भी
घर जाने की इच्छा ना हुयी
महफ़िल ख़त्म हुयी
घर पहुँच कर घंटी बजाई
माँ ने दरवाज़ा खोलने में
देर लगायी
दरवाज़ा खुलते ही
देरी के लिए खरी खोटी
सुनायी
माँ कुछ ना बोली
भोजन की थाली लगायी
गर्म रोटी बना कर खिलायी
चुपचाप खाट पर जाकर
लेट गयी
फिर आवाज़ लगायी
एक नींद की गोली दे दे
मुझको
मुझे बात समझ नहीं आयी
तुरंत जाकर
माँ के सर पर हाथ रखा
सर बुखार से तप रहा था
मन ग्लानी से भर गया
अपने व्यवहार पर
क्रोध आने लगा
एक मैं हूँ जिसे
माँ की चिंता ही नहीं
दूसरी तरफ माँ है
जिसे मेरे सिवाय
किसी की चिंता नहीं
बरस बीत गए इस बात को
पर भूला नहीं हूँ
खुद को माफ़ नहीं
कर सका
अब भी आँखें भीग जाती हैं
उस घटना को याद कर के
कितना भी प्रायश्चित
करलूं
माँ की बराबरी नहीं
कर सकता
माँ तो माँ होती
उसका सानी
ना कभी हुआ है कोई
ना कोई हो सकता
17-04-2012
446-26-04-12
1 comment:
heart touching!!!!!!!
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