Saturday, April 30, 2011

अब सहारा मेरा ,सिर्फ याद तुम्हारी

तुम ही सोचो
कैसे भुला सकता तुम्हें?
हर याद सीने से लगा
रखी तुम्हारी
ना शिकायत कोई
ना शिकवा कोई
खुशी से हर बात
मानी थी तुम्हारी 
खुद को
भुलाया था तुम्हारे खातिर
फिर क्यूं
याद आती नहीं हमारी
ज़िन्दगी पहले भी तुम्हारी थी
अब भी तुम्हारी
निरंतर जो आग जलाई
दिल में तुमने
ना बुझेगी मरते दम तक
अब सहारा मेरा सिर्फ
याद तुम्हारी
30-04-2011
793-213-04-11

खुद को तसल्ली देता रहा


दिन में  खुद को मसरूफ रखा
रातें काटी तेरी याद में अक्सर
दिखाने को हंसता रहा
दिल में हर वक़्त रोता रहा
कमज़ोर ना समझे कोई
बेमन से ज़िन्दगी जीता रहा
एक भी ना मिला
जो हाल-ऐ-दिल पूंछता  
हर शख्श दुखड़े अपने रोता
कैसे रोते को और रुलाता ?
हाल-ऐ-दिल जो अपना सुनाता
निरंतर
खुद को तसल्ली देता रहा
तुम्हारा इंतज़ार करता रहा
30-04-2011
792-212-04-11

सब पीछे रह गया

सब पीछे रह गया
बड़े से जतन से इकट्ठा किया
धन दौलत का एक एक कतरा
रह गया
ज़मीन ज्यादाद सब पीछे छूट गया
कितनों को धोखा दिया ?
कितनों को दुःख पहुंचाया ?
चैन आराम कभी ना देखा
जीवन का अर्थ धन को समझा
प्यार का दिखावा किया
सब व्यर्थ  गया
निरंतर होड़ में जी ना सका
ना कभी संतुष्ट रहा
मन सदा उद्वेलित रहा
क्या पाया अब समझ आ रहा
पहले क्यों कभी ध्यान ना किया
अब पछता   रहा
अब कुछ कर ना सकता
चाहूँ भी तो हो ना सकता
वक़्त चला गया
सब पीछे रह गया     
30-04-2011
791-211-04-11

जीवन का मर्म

लोगों को जाते देखा
मौत का
अहसास ना था
कल तक
सबके साथ  था
आज सबसे दूर
खुद मौत के आगोश में है
कल तक वो बोलता था 
सब सुनते थे
विचारों से उद्वेलित
करता था
हर सवाल का
जवाब देता
हंसता,हंसाता
आज सब बोल रहे
वो सुन रहा 
कुछ रो रहे
कुछ दिखावा कर रहे
मन ही मन खुश हो रहे
वो निरंतर बेबस लेटा 
चुपचाप सब देख रहा
ना हंस सकता
ना रो सकता
कुछ कहना चाहता
कह ना पाता
खामोशी से शरीर के
हर नामोनिशान  को
मिटते देख रहा
जीवन का मर्म
समझ रहा
30-04-2011
790-210-04-11