रंग बिरंगी तितली हूँ,
छोटा सा जीवन मेरा
जीती जब तक
बाग़ बाग़ घूमती
शान बगीचे की कहलाती
फूलों पर मंडराती
ना नाज़, नखरे मेरे
हर फूल से मोहब्बत मुझे
महक उनकी की सूंघती
रसस्वादन पराग का करती
अठखेलियों से मन
उनका बहलाती
उनमें घुल मिल,
उन जैसी दिखती
बच्चे बूढ़े सबको लुभाती
नाज़ुक शरीर
दुल्हन सा श्रृंगार मेरा
कोमल पंखों से निरंतर
उडती रहती
तेज़,गर्मी बर्दाश्त नहीं,
आंधी, तूफ़ान से घबराती
मेरे भी दुश्मन बहुत
पक्षियों से बच कर रहती
कब निवाला मुझे बना ले
इस बात से डरती
रहती
18-04-2011
699-122-04-11
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