बीते वक़्त को याद
क्या किया
अश्कों का झरना
बहने लगा
बहुत मुश्किल से भूला था
किस्सा पुराना छिड़ गया
हर लम्हा आँखों से
गुजरने लगा
सिलसिला जागने का
फिर शुरू हो गया
काफिला आगे बढ़ गया
मैं पीछे रह गया
निरंतर किस्मत पर
रोता रहा
मोहब्बत में बर्बाद
होता रहा
27-04-2011
768-188-04-11
1 comment:
शानदार भाव अच्छी रचना. बधाई स्वीकारें
तीखे तड़के का जायका लें
संसद पर एटमी परीक्षण
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