Sunday, April 17, 2011

ग़मों की धूप

ग़मों की
धूप ने भी रंग
मेरा फीका ना किया
उनके
इंतज़ार में भी चेहरा
मेरा सुर्ख रहा
रात भर सोता नहीं
फिर भी आँखों से पता
कहाँ पड़ता
ख़्वाबों में उनसे मिल लेता  
जहन और जिस्म
तरो ताज़ा बना रहता
निरंतर
हालात ऐसे ना रहेंगे
खुदा कभी तो इल्तजा
सुनेंगे
ग़मों से निजात मुझे देंगे
दीदार उनके होंगे
चेहरा
वाकई में सुर्ख होगा
जहन सुकून से लबालब
होगा
17-04-2011
693-117-04-11

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