बात की
बात बड़ी निराली
जब तक छुपी रहती
कोई बात नहीं होती
जुबान से निकलती
तो बतंगड़ बनती
बात से
नयी बात निकलती
बात हक की,
युद्ध कराती
आजादी की बात,
क्रांती कराती
बात का
कोई घर नहीं होता
एक बार निकली
शहर,शहर
बसेरा बनाती
लोगों के राज़
लोगों को बताती
मन को लुभाती
दिलों को मिलाती
कडवी हो तो,
दुश्मनी कराती
दुश्मनी कराती
निरंतर
गुल खिलाती बात
दिल में
दुःख लाती बात
चेहरे पर
हंसी लाती बात
बात की बात भी,
कमाल की बात
बात ही
बात ही
बात में,लिख दी आज
बात की बात
20-04-2011
714-137-04-11
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