Monday, April 25, 2011

इतनी नफरत ना रखो

इतनी नफरत ना रखो 
इल्तजा मेरी सुन लो 
बस इतना सा बता दो
क्या खता हुयी मुझ से
मैंने फूलों से दोस्ती की थी
क्यूं काँटों से नवाज़ा मुझे
हर लम्हा साथ दिया
तुम्हारा
क्यूं अब एक लम्हा भी
नहीं मेरे लिए
निरंतर
दिल में रखा तुमको
क्यूं अब मिलना भी
मयस्सर नहीं मुझ को 
25-04-2011
758-178-04-11

No comments: