इतनी नफरत ना रखो
इल्तजा मेरी सुन लो
बस इतना सा बता दो
क्या खता हुयी मुझ से
मैंने फूलों से दोस्ती की थी
क्यूं काँटों से नवाज़ा मुझे
हर लम्हा साथ दिया
तुम्हारा
क्यूं अब एक लम्हा भी
नहीं मेरे लिए
निरंतर
दिल में रखा तुमको
क्यूं अब मिलना भी
मयस्सर नहीं मुझ को
25-04-2011
758-178-04-11
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