दिन में खुद को मसरूफ रखा
रातें काटी तेरी याद में अक्सर
दिखाने को हंसता रहा
दिल में हर वक़्त रोता रहा
कमज़ोर ना समझे कोई
बेमन से ज़िन्दगी जीता रहा
एक भी ना मिला
जो हाल-ऐ-दिल पूंछता
हर शख्श दुखड़े अपने रोता
कैसे रोते को और रुलाता ?
हाल-ऐ-दिल जो अपना सुनाता
निरंतर
खुद को तसल्ली देता रहा
तुम्हारा इंतज़ार करता रहा
30-04-2011
792-212-04-11
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