रेगिस्तान
का मुसाफिर हूँ
धूल आंधी में जीता हूँ
बियाबान दुनिया है
दूर तक हरयाली नहीं
दूर से रेत के धोरे आस
जगाते
पास पहुंचता तब तक
हवा में उड़ जाते
मरिचिकाओं में पानी
ढूंढता हूँ
हर बार प्यासा रहता हूँ
फिर भी निरंतर चलता
रहता
कहीं कैक्टस नज़र आता
हरीतिमा का अहसास
होता
मन में आशा जगाता
सफ़र पूरा करना है
मन में ठान
दुगने जोश से चल
पड़ता हूँ
20-04-2011
713-136-04-11
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