Thursday, April 21, 2011

मेरे लिए आज भी अन्धेरा था

चाँद पूरा था
रात सर्द थी
मेरे लिए गर्म थी
वो मेरे पास थे
दिल खुश  था
जहन में सुकून था
कब भोर हुयी
पता ना चला
उनके जाने का
वक़्त हुआ
दिल घबराने लगा
फिर कब आयेंगे ?
मन पूछने लगा
निरंतर
जुदाई के लम्हों 
से डर लगता
लौट कर आने तक
कैसे वक़्त कटेगा
सवाल तंग करता
यही सोचते सोचते
नींद खुल गयी
ना वो थे
ना चांदनी रात थी
सुबह का समय था
सूरज उग रहा था
मेरे लिए आज भी
अन्धेरा था
21-04-2011
722-144-04-11

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