माँ
के हाथों को देखो
खुर्दराहट उनकी
महसूस करो
उन में पडी
झुर्रियों को देखो
यूँ ही खुरदरे नहीं हुए
हाथ माँ के
नहलाया तुम्हें
कपडे तुम्हारे धोये
रोटी हाथों से बनायी
बर्तन हाथों से मांजे
कभी उफ़ ना सुनी
तुमने उसकी
निरंतर जीवन जिया
तुम्हारे लिए
क्या किया
तुमने माँ के लिए ?
क्या कहा माँ को तुमने ?
याद ज़रा कर लो ,
अंतर्मन टटोल लो
नहीं किया तो अब
कर लो
ख्याल माँ का कर लो
पुन्य माँ का ले लो
जीवन सार्थक कर लो
28-04-2011
769-189-04-11
2 comments:
बहुत शानदार लिखा.. बधाई
तीखे तड़के का जायका लें
संसद पर एटमी परीक्षण
vah bahut sundar
achhi rachna
bahut bahut shubhkaamna
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