(काव्यात्मक लघु कथा )
नया घर बसाना चाहता था
कहा बसाऊँ ?
सोचते सोचते चलने लगा
शहर के बाहर निकल गया
चलते चलते थक गया
चौराहे पर पहुँच गया
कोई नज़र नहीं आ रहा
व्यथित और परेशान खडा रहा
नया स्थान ढूंढना था
मंजिल पर पहुंचना था
समझ नहीं आ रहा था
किधर जाऊं ?
दाएँ, बाँए या सीधे जाऊं
पीछे लौट नहीं सकता
क्या चौराहे पर खडा
व्यथित होता रहूँ ?
अपने गुरूओं और
उनके उपदेशों का ध्यान
आने लगा
आने लगा
तभी याद आया
गुरुजी ने कहा था सब्र रखो
इश्वर का ध्यान करो
समझ नहीं आए तो
किसी अनुभवी की मदद लो
उस पर विश्वाश करो
उसके बताए अनुरूप करो
मार्ग ज़रूर मिलेगा
मंजिल तक पहुंचाएगा
मुझे समझ आ गया
गुरूजी की बात का
अनुसरण किया
अनुसरण किया
एक बुजुर्ग नज़र आया
पैदल चला रहा था
उस से मार्ग पूंछा
वो बोला पीछे पीछे
चलते रहो
चलते रहो
मैं निरंतर पीछे पीछे
चलता रहा
चलता रहा
सामने देखा खूबसूरत
जगह थी
जगह थी
लगा स्वर्ग में पहुँच गया
थकान मिट चुकी थी
शरीर में ताजगी थी
दिमाग बिलकुल शांत था
अचानक वो अद्रश्य हो गया
मैं हैरान रह गया
तभी आकाशवाणी हुयी
मेरे बताए मार्ग पर
चलते रहोगे
चलते रहोगे
सदा मंजिल पर पहुंचोगे
इश्वर ने मार्ग दिखाया
मंजिल पर पहुंचाया
25-04-2011
761-181-04-11
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