Tuesday, April 19, 2011

दिल की सुनूं या जहन की,फैसला मुश्किल है


उनकी जुदाई के साए
पीछा नहीं  छोड़ते
अँधेरे में भी
निरंतर साथ रहते
नया हमसफ़र मुझे मिला
कैसे इन्साफ करूँ उस से ?
चौराहे पर खडा हूँ
ना हंस सकता
ना रो सकता
इक तरफ हम सफ़र मेरा
इक तरफ साया उनका
दिल की सुनूं या जहन की
फैसला मुश्किल है
सहारा खुदा का
रास्ता वो ही निकालेगा
या तो दिल की सुनेगा
या जहन को हाँ भरेगा
19-04-2011
706-129-04-11

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