मौत के
दरवाज़े पर खडा था
फिर भी निगाहें घर के
दरवाज़े पर थीं
सब परेशाँ मेरे लिए
मैं परेशाँ उनके लिए
सब इंतज़ार कर रहे थे
कब जाऊंगा
मैं इंतज़ार कर रहा था
कब आयेंगे
सब खामोशी से
दुआ कर रहे थे
ऊपर मुझे सुकून मिले
मैं खुदा से दुआ कर रहा
ज़मीं पर उन्हें देख लूं
तो सुकून से ऊपर चलूँ
निरंतर इसी जद्दोजहद में
वक़्त गुजरता गया
ना वो आये,
ना मैं ऊपर गया
बाकी सब चले गए
मैं आज भी
इंतज़ार कर रहा
25-04-2011
753-173-04-11
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